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शिवरात्रि संदेश – भाग 1

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आर्ष विद्या समाज के स्थापक आचार्य श्री के.आर.मनोज जी का शिवरात्रि के अवसर पर संदेश - भाग 1

ॐ नमः शिवाय।  सभी को अनुग्रहपूर्ण शिवरात्रि की शुभकामनाएं। 

◼️ महाशिवरात्रि का महत्व –

महाशिवरात्रि एक पवित्र और महत्वपूर्ण दिवस है, जो लोकहित के लिए सनातन धर्म (वेद) का उपदेश देने के लिए ऋषियों के चित्त में और भूलोक पर अवतरित हुए श्री परमेश्वर की उपासना के लिए समर्पित है। शिवरात्रि को श्री परमेश्वर के आविर्भाव का दिवस और सनातन धर्म की स्थापना का दिवस भी मान सकते हैं। आविर्भाव का मतलब है प्रकट होना या प्रत्यक्ष होना। अकाय, निराकार और निरवयव परमशिव जब-जब तीनों लोकों के वासियों के सामने वेद (सनातन धर्म/ईश्वर ज्ञान) का ज्ञान देने के लिए प्रकट हुए, उन संदर्भों का कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करने का पुण्य दिवस है शिवरात्रि।

◼️ कौन हैं सनातन धर्म के परमेश्वर?

परमेश्वर वह ईश्वर हैं जो समस्त विश्व में, काल में, और चराचारों में परम तत्व के रूप में वास करते हैं। वे कारणलोक के अधिप – भगवान, सूक्ष्म लोकवासी देवताओं और स्थूललोक निवासी – इन सब के ईश्वर हैं। वे इन सभी के अतीत हैं और कोई उनका समतुल्य नहीं है। वे शाश्वत अस्तित्व वाले सनातन हैं। वे विश्व और काल के नाथ और ईश्वर हैं। वे वो परब्रह्म तत्व हैं जो विश्वेश्वर, कालेश्वर, भूतेश्वर, आत्मेश्वर और सभी चराचारों के परमेश्वर हैं। श्री परमेश्वर सभी ईश्वरों के ईश – महेश्वर, सभी देवों के नाथ – सुरेश्वर, देवदेव, महादेव – इन सभी नामों से जाने जाते हैं। स्थूल-सूक्ष्म-कारण लोकों के अधिप विश्वनाथ (विश्वेश्वर, जगदीश्वर, जगन्नाथ), काल के नाथ महाकाल (कालेश्वर, कालनाथ), चराचारों के आश्रय पशुपति (भूतनाथ, भूतेश्वर, गणपति, गणेश, गणेश्वर, गणनाथ, जीवनाथ, जीवेश्वर, आत्मनाथ, आत्मेश्वर) – इनका वर्णन वेदोपनिषदों और ऋषि परंपराओं ने एक समान किया है।

श्री परमेश्वर अनंत है। उनके गुण, शक्तियाँ और नाम अनंत हैं, असंख्य हैं। परमशिव, पराशक्ति, विष्णु, ब्रह्मा, रुद्र, शंकर, शंभू, गणपति, सुब्रह्मण्य, शास्ता, सनातन, परमात्मा, मूल तत्व, परब्रह्म, आदि अनेक नाम हैं।
तीन लोक (बोध-ऊर्जा-भौतिक मण्डल / सत्व-रजो-तम लोक / कारण-सूक्ष्म-स्थूल लोक), काल, जीव – इन सब के पूर्व जिनका अस्तित्व था – ‘आद्य’। इन लोक, काल के आविर्भाव और उत्क्रांति (evolution) के समय और उसके पश्चात भी जिनके स्वभाव या शक्ति विशेष अथवा महिमा में कोई अंतर नहीं हुआ हो; सृष्टि में हो रहे परिवर्तन या प्रकृति नियमों का जिन पर कोई प्रभाव न हो- ऐसे ‘अव्यय’ और अच्युत हैं। अंततः सर्वस्व अपने में विलय करने वाले अथवा समाहित करने वाले एकात्मस्वरूपी – ‘केवल’ हैं। वे आद्य, अव्यय, केवल हैं – इसलिए सनातन हैं।

मंगलमूर्ति शंभू भी वे हैं; परमकल्याणकारी शंकर ; सभी तत्वों का मूल आधार नारायण ; सर्वस्व में व्याप्त विष्णु; विश्वोत्पत्ति का कारण और स्रोत, और सृष्टि-ज्ञान (प्रपंच बोध) होने के कारण, वे ब्रह्मा भी हैं। सबका मन रमने वाले राम, सभी को आकृष्ट करने वाले कृष्ण, सभी दुःखों और पापों का संहार करने वाले हर, विश्व के प्रभु हरि, ज्ञान देने वाली माया, अविद्या से मोक्ष देने वाले रुद्र हैं – परंज्योतिसच्चिदानंदस्वरूपी एकब्रह्म तत्व हैं सनातन धर्म के परमेश्वर।

जनन-मरण रहित एकरक्षक होने के नाते- अजैकपाद; और सर्वस्व का आधार होने के कारण – अहिर्बुध्न्य हैं। परमात्मा सर्वव्यापी और सर्वान्तर्यामी हैं। समष्टि रूप में ब्रह्मा और व्यष्टि रूप में आत्मा हैं। श्री परमेश्वर यथार्थ में निर्गुण हैं। त्रिगुणों के परे होने के कारण और माया के अतीत होने के कारण उन्हें ‘निर्गुण’ का विशेषण दिया गया है। निरंजन, निरवद्य, निरामय – ये सब पर्याय हैं। तथापि, जब प्रकृति में स्वयमेव सृष्टि की प्रक्रिया का समारंभ हुआ, तब वे हिरण्यगर्भ और सगुण कहलाए।
नाम और रूप में अनेक प्रकार के तर्क होते हैं। ईश्वर तो नाम और रूप के अतीत हैं। इंद्रीयानुभवों और युक्ति-चिंता के परे ध्यान-समाधि से लब्ध होने वाले अंतर्दर्शन ( ज्ञान/ intuition) से ही परमेश्वर को जान सकते हैं। परमेश्वर तत्व को ही श्रुतियों और ऋषि परंपराओं ने विभिन्न नाम दिए हैं। एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति ( परम सत्य एक ही ; ज्ञानी कई प्रकार से बताते हैं, कई नाम देते हैं। ) सच्चिदेकं ब्रह्म ( सत्, चित् एकत्व – परब्रह्मतत्व लक्षण।) ऐसे कितने ही प्रमाण है?।

वेदों में प्रतिपादित देवताओं के सभी नाम एक परब्रह्म के विविध गुणों को सूचित करते हैं। वेदशब्दकोश निरुक्त में यास्क महर्षि कहते हैं –
“एकस्यातमान: अन्ये देवं प्रत्यङ्गानि भवति” – हर देवता शब्द एक परमेश्वर के अनेक प्रत्यंग (अंग और गुणवाची नाम/विशेषण) होते हैं। अतः ईश्वर के विविध पर्यायों को लेकर गलत धारणा और संघर्ष की कोई आवश्यकता नहीं है। जब रूप होते हैं, तभी भेद होता है। जब परमेश्वर ही निराकार, निरवयव, और अकाय हैं, तो धार्मिक संघर्ष क्यों हो?

लेकिन परमेश्वर सर्वशक्त हैं – अतः सकाय, साकार भी हो सकते हैं – यह भी विस्मृत नहीं किया जा सकता। इस प्रकार साधकों के बीच में अपनी इच्छा के अनुसार परमेश्वर के प्रत्यक्ष रूपों का ध्यान-श्लोकों के माध्यम से प्रचार हुआ।)

(शेष भाग आनेवाले अध्यायों में)