आर्ष विद्या समाज के स्थापक आचार्य श्री के.आर.मनोज जी का शिवरात्रि के अवसर पर संदेश - भाग 1
ॐ नमः शिवाय। सभी को अनुग्रहपूर्ण शिवरात्रि की शुभकामनाएं।

महाशिवरात्रि एक पवित्र और महत्वपूर्ण दिवस है, जो लोकहित के लिए सनातन धर्म (वेद) का उपदेश देने के लिए ऋषियों के चित्त में और भूलोक पर अवतरित हुए श्री परमेश्वर की उपासना के लिए समर्पित है। शिवरात्रि को श्री परमेश्वर के आविर्भाव का दिवस और सनातन धर्म की स्थापना का दिवस भी मान सकते हैं। आविर्भाव का मतलब है प्रकट होना या प्रत्यक्ष होना। अकाय, निराकार और निरवयव परमशिव जब-जब तीनों लोकों के वासियों के सामने वेद (सनातन धर्म/ईश्वर ज्ञान) का ज्ञान देने के लिए प्रकट हुए, उन संदर्भों का कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करने का पुण्य दिवस है शिवरात्रि।

परमेश्वर वह ईश्वर हैं जो समस्त विश्व में, काल में, और चराचारों में परम तत्व के रूप में वास करते हैं। वे कारणलोक के अधिप – भगवान, सूक्ष्म लोकवासी देवताओं और स्थूललोक निवासी – इन सब के ईश्वर हैं। वे इन सभी के अतीत हैं और कोई उनका समतुल्य नहीं है। वे शाश्वत अस्तित्व वाले सनातन हैं। वे विश्व और काल के नाथ और ईश्वर हैं। वे वो परब्रह्म तत्व हैं जो विश्वेश्वर, कालेश्वर, भूतेश्वर, आत्मेश्वर और सभी चराचारों के परमेश्वर हैं। श्री परमेश्वर सभी ईश्वरों के ईश – महेश्वर, सभी देवों के नाथ – सुरेश्वर, देवदेव, महादेव – इन सभी नामों से जाने जाते हैं। स्थूल-सूक्ष्म-कारण लोकों के अधिप विश्वनाथ (विश्वेश्वर, जगदीश्वर, जगन्नाथ), काल के नाथ महाकाल (कालेश्वर, कालनाथ), चराचारों के आश्रय पशुपति (भूतनाथ, भूतेश्वर, गणपति, गणेश, गणेश्वर, गणनाथ, जीवनाथ, जीवेश्वर, आत्मनाथ, आत्मेश्वर) – इनका वर्णन वेदोपनिषदों और ऋषि परंपराओं ने एक समान किया है।
मंगलमूर्ति शंभू भी वे हैं; परमकल्याणकारी शंकर ; सभी तत्वों का मूल आधार नारायण ; सर्वस्व में व्याप्त विष्णु; विश्वोत्पत्ति का कारण और स्रोत, और सृष्टि-ज्ञान (प्रपंच बोध) होने के कारण, वे ब्रह्मा भी हैं। सबका मन रमने वाले राम, सभी को आकृष्ट करने वाले कृष्ण, सभी दुःखों और पापों का संहार करने वाले हर, विश्व के प्रभु हरि, ज्ञान देने वाली माया, अविद्या से मोक्ष देने वाले रुद्र हैं – परंज्योतिसच्चिदानंदस्वरूपी एकब्रह्म तत्व हैं सनातन धर्म के परमेश्वर।
लेकिन परमेश्वर सर्वशक्त हैं – अतः सकाय, साकार भी हो सकते हैं – यह भी विस्मृत नहीं किया जा सकता। इस प्रकार साधकों के बीच में अपनी इच्छा के अनुसार परमेश्वर के प्रत्यक्ष रूपों का ध्यान-श्लोकों के माध्यम से प्रचार हुआ।)