लेख 5
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श्री नारायण गुरु और उनके द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए सनातन धर्म के प्रति ई.एम.एस. को कोई सहानुभूति या ममता नहीं थी, इस तथ्य का उपर्युक्त लेखों में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था। ई.एम.एस. ने गुरुदेव की महानता को कम करके दिखाने की भी कोशिश की। लेकिन यहाँ कुछ विरोधाभास हैं जिनको मैं उजागर करना चाहता हूँ। निम्नलिखित दो मुद्दों पर मैं पूरी तरह ई.एम.एस के कथनों का समर्थक हूँ।
ई.एम.एस. द्वारा प्रस्तुत इन विकृत विचारों को मुख्यमंत्री अब नकार रहे हैं। यदि यह सदुद्देश्य से किया गया है, तो यह स्वागत योग्य है।
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ई.एम.एस. ने वहाँ के विज़िटर्स डायरी में लिखा: “हम स्वैच्छिक मतांतरण के विरोधी नहीं हैं।” साथ में यह उपदेश भी – “ध्यान रहे कि तुम्हारी गतिविधियों के कारण लोगों में स्पर्धा या द्वेष न भड़क उठे।” और अंत में वे यह शुभकामना भी लिखना न भूले – “मेरी इच्छा है कि यह संस्था निरंतर अभिवृद्धि को प्राप्त हो!”
पालक्काड और मलाप्पुरम ज़िलों की सीमा पर स्थित पुलामंतोल में मस्जिद की नींव रखने वाले ई एम एस थे। मलाबार के कुख्यात “माप्पिला हाल इळक्कं” कहे जाने वाले मज़हबी उन्माद को प्रोत्साहित करने वाले “मलाप्पुरम नेर्चा” पर ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। प्रगतिवादी मुस्लिमों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए ईएमएस सरकार ने इस प्रतिबंध को हटा दिया। राज्य सरकार ने मुस्लिम समुदाय के शांतिपूर्ण नेताओं द्वारा दी गई चेतावनियों को भी नजरअंदाज किया। जिहादियों को उत्साहित करने वाले और अंधविश्वास से भरे इन आयोजनों को नकारात्मक रूप से मूल्यांकित किया गया है। “काफ़िरों के खिलाफ संघर्ष में शहीद होने वालों” के स्मृति समारोह के रूप में इन आयोजनों को मनाया जाता है। इन स्मरणोत्सवों के आयोजन ने इस्लामिक कट्टरवाद को मजबूत किया। यह मुद्दा वामपंथी विचारधारा के सहयात्री हमीद चेंदमंगलूर जैसे व्यक्तियों द्वारा भी उठाया गया है।
मुसलमानों को अपने पक्ष में लाने के लिए कम्युनिस्ट पार्टियाँ हमेशा तैयार रहती थीं। मुस्लिम लीग के द्विराष्ट्रवाद और पाकिस्तान की माँग का तात्त्विक रूप से समर्थन करने वाली
एकमात्र राजनीतिक पार्टी अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी थी। पार्टी के विभाजन के बाद भी दोनों पक्ष संगठित अल्पसंख्यक वोटबैंक के तुष्टीकरण पर एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते रहे। मुस्लिमों को खुश करने के लिए इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करने के लिए व्यापक प्रयास किए गए। इस्लामिक हमलों और मुस्लिम हमलावरों को सफेद झूठ से ढकने का दृष्टिकोण आज भी जारी है। हैदर, टिपू जैसे मुस्लिम लुटेरों द्वारा मलाबार में किए गए लूट, हत्याएँ, मंदिरों को ध्वस्त करना, बलात्कारी मतांतरण, महिलाओं और बच्चों समेत गैर-मुसलमानों को गुलाम बनाना, इन सबको छिपाया गया। माप्पिला विद्रोह को किसान विद्रोह के रूप में चित्रित करना एक और उदाहरण है। 1921 के माप्पिला विद्रोह का कड़ा सामना करने वाले और देर से ही सही, हिन्दू समुदायों को बचानेवाले हिचकॉक का स्मारक हटाने का आंदोलन भी कम्युनिस्ट पार्टियों ने आयोजित किया था। 1967 में ई.एम.एस. सरकार के दौरान, ई.के. इम्बिचीबावा, जो कि परिवहन मंत्री थे, ने इस स्मारक को तोड़कर वहाँ केएसआरटीसी का एक प्रतीक्षालय बना दिया। अब संस्थाओं को माप्पिला विद्रोहियों के नाम देना, उनके लिए स्मारक और संग्रहालय बनाना जैसे कदम उठाए जा रहे हैं।
इस को भी 1969 के मलाप्पुरम जिले के गठन के माध्यम से ई.एम.एस. ने साकार किया। ये सभी मजहबी तुष्टीकरण की मिसालें हैं, और इन्हीं योजनाओं को जारी रखा, केरल का शासन करने वाले विभिन्न गठबंधनों ने।
हिंदुओं की "गलतफ़हमी" दूर करने की ज़रूरत नहीं है!
(जारी)