विजयदशमी के पावन अवसर पर आर्ष विद्या समाज के संस्थापक, आचार्य श्री के.आर. मनोज का संदेश
परमशिव, पराशक्ति, महाविष्णु, ब्रह्मा, गणपति, सुब्रह्मण्य, शास्ता, इंद्र, मित्र, अग्नि, नारायण, राम, कृष्ण, परमात्मा – ये सभी नाम परब्रह्म तत्व के विशेषण हैं और सनातन धर्म में इसे श्रीपरमेश्वर कहा जाता है।
यह परम तत्व शुद्धबोधचैतन्यानंद स्वरूपी है और इसका कोई लिंग-भेद नहीं होता। अर्थात् परम तत्व न स्त्री है, न पुरुष। उनके कोई शरीर ही नहीं हैं। परमेश्वर ‘अकाय’ हैं – बिना स्थूल, सूक्ष्म, कारण शरीरवाले। वे ‘निराकार’ हैं (जिनकी आकृति अथवा रूप नहीं है), ‘निरवयव’ हैं (जिनके अंग नहीं हैं) l
प्रकृति के तीन गुण – सत्व (प्रकृति का बोध/क्रम/चैतन्य / consciousness), रजस (प्रकृति की ऊर्जा), तमस (जड़/द्रव्य/matter ) – यह तीनों गुण श्री परमेश्वर के तत्व को सीमित नहीं करते। अतः उन्हें निर्गुण, त्रिगुणातीत, निरञ्जन आदि भी कहा जाता है।
परमेश्वर का एक और नाम है – सनातन। नित्यशुद्ध-नित्यमुक्त-नित्यबुद्ध भाव है सनातनत्व। जब से यह विश्व है, काल है, जीव-जंतु हैं – उन सब से पहले परमेश्वर का अस्तित्व है। उसके बाद जब विश्व, काल और जीवों का आविर्भाव और उनका कलानुसृत परिवर्तन हुआ, तब भी परमेश्वर के स्वभाव गुणों या शक्ति अथवा महिमा में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ। इसलिए परमेश्वर ‘अव्यय’ कहलाते हैं। अंततः, सारी सृष्टि को अपने में समेटकर सत्यस्वरूपी बनकर स्थित होने वाले उस एकमात्र तत्व का नाम है – ‘केवल’। इन सभी गुणों के कारण परमेश्वर सनातन हुए।
तदापि सनातन धर्म में परमेश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन और स्वरूप की भी मान्यता है। परमेश्वर पराशक्ति भी है। सभी शक्तियाँ सम्मिलित करने वाले सर्वशक्तित्वभाव को पराशक्ति कहते हैं। यह सर्वशक्तित्वभाव अपनी महिमा और विभुत्व को नष्ट करने के अलावा अन्य सभी कार्यों को संपन्न करने की क्षमता रखता है। इसी सर्वशक्तित्व के कारण परमेश्वर सगुण और साकार भी हो सकते हैं, लेकिन लोक या काल की परिधि और नियम उनके लिए बाधक नहीं होते। ऋषियों के अनुसार, परमेश्वर ने साधकों के लिए और लोकहित के लिए सावयव/साकार प्रत्यक्ष भाव अनेकों बार स्वीकार किया है। सर्वशक्तित्व के बल पर बिना माता-पिता के, बिना जन्म के स्वीकृत ये रूप हैं – प्रत्यक्ष शरीर। इच्छा मात्र से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष होने की क्षमता रखने वाले रूप को भव रूप, दिव्य देह, माया रूप, विभूति शरीर, लिंग शरीर आदि कहा जाता है।
मनुष्य कुल को सनातन धर्म, योगविद्या, तंत्रविद्या, वेदांत, सिद्धांत आदि देने के लिए आर्ष गुरु परंपरा के सामने प्रकट हुए ‘दक्षिणामूर्ति’ ऐसे प्रत्यक्ष मूर्ति हैं। उन्हीं को ज्ञानमूर्ति, वेदमूर्ति, आदिनाथ, आदियोगी, शिवऋषि, ऋषि शिवशंकर, श्रीकण्ठरुद्र, नीलकंठरुद्र, कैलासनाथ इन नामों द्वारा विभिन्न परंपराएं प्रकीर्तित करती हैं। नरसिम्हमूर्ति, गजमुखगणपति, दुर्गा आदि ध्यान श्लोकों में जिन प्रकार की मूर्तियों का वर्णन है, वे यही प्रत्यक्ष रूप हैं।
तांत्रिक पद्धति के साधक और भक्त मातृ-भाव में पराशक्ति का चित्रण करते हैं। परमेश्वर का स्नेहमयी माता के रूप में उपासना करने वाले कई साधक हैं। श्री रामकृष्ण परमहंस जी और श्री परमहंस योगानंद जी प्रारंभ में इस विधि का पालन करते थे।सनातन धर्म में ईश्वर को माता, पिता, गुरु, और सखा के रूप में देखने की परंपरा विशेष है। कला, साहित्यादि विद्याओं की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती, धन-धान्य समृद्धि की मूर्ति महालक्ष्मी, धर्मसंरक्षणार्थ शौर्य पराक्रम रूपी देवी दुर्गा, महाकाली, चण्डिका जैसी कई मातृ देवता स्वरूप हैं।
अश्विन नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि पराशक्ति पूजा के लिए विशेष दिवस माने जाते हैं। आश्विन मास के अमावस के बाद प्रथमा से लेकर दशमी तक के दस दिनों को अश्विन नवरात्रि की साधना करते हैं। (नौ रात और दसवें दिन का प्रभात मिलकर यह व्रत पूर्ण होता है )। इस काल में जगदंबिका, चंडिका, चामुण्डी, दुर्गा, भद्रकाली, सरस्वती, महालक्ष्मी, दश महाविद्याएँ – महाकाली, तारा, बगलामुखी, छिन्नमस्ता, धूमावती, भुवनेश्वरी, षोडशी त्रिपुरसुंदरी, त्रिपुरभैरवी, मातंगी, कमला जैसे विविध भावों की आराधना की जाती है।
आर्ष गुरु परंपरा से साधना रहस्य स्वीकार करके उपासना करना महत्वपूर्ण है।
बहुत सारी मूर्खतापूर्ण कथाएँ इस बारे में फैलाई जा रही हैं। स्वाध्याय बुद्धि से सीखने की सनातन धर्म परंपरा अपनाएँ। झूठी कहानियों को अस्वीकार करें और व्यक्ति एवं समाज के लिए जिन तत्वों से लाभ हो उन्हें स्वीकार करें।
दुर्गाष्टमी के दिन अपने सभी शस्त्र पराशक्ति को समर्पित करें, आयुध-पूजा करें। विजयदशमी के दिन लोककल्याण के लिए ईश्वर के आशीर्वाद और अनुग्रह से उसे पुनः ग्रहण करना, विद्यारंभ करना – यह सब नवरात्रि की विशेषताएं हैं। केरल निवासियों के लिए यह सरस्वती देवी को समर्पित ओणम है!
बुराइयों अथवा दुर्गुणों पर अच्छाइयों की जीत को उद्घोषित करने वाले इस मंगल दिवस पर सभी को विजयदशमी की शुभकामनाएं। संसार को त्रस्त करने वाले सभी आसुरिक शक्तियों को दूर करके धर्म के आत्यंतिक विजय के लिए हमें एकजुट होकर परिश्रम करना है।
(आर्ष विद्या समाज)